24/2024
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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यहाँ वहाँ हर ओर लगा है।
राजनीति का चोर लगा है।।
क्या मंदिर का पावन ऑंगन,
अनायास बरजोर लगा है।
शालाओं में छिपकर बैठा,
दरिया में हिलकोर लगा है।
बात न माने संतति अपनी,
घर - ऑंगन कमजोर लगा है।
समझ रहे कलयुग को त्रेता,
काला रँग ही गोर लगा है।
पूरब चले बताए पश्चिम,
रोग बड़ा घनघोर लगा है।
राज न इसका जाने कोई,
छुओ जहाँ वह छोर लगा है।
'शुभम्' सियासत ज़हर जलेबी,
जब देखो तब भोर लगा है।
● शुभमस्तु !
14.01.2024●11.45आ०मा०
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