006/2024
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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श्रेय-अश्व पर
हो सवार
चल पड़ा,
मात्र मैं ही बड़ा
सबसे तगड़ा।
लिया है जो
मन में ठान,
कान बहरे
भरा अभिमान,
क्यों सुने किसी की
कोई भी चिल्लाए!
नया इतिहास-
निर्माण,
रखें पीढ़ियाँ
मुझे ही याद,
वर्षों के बाद।
मैं ही कर्ता
नया ही रचता,
दृष्टियाँ सबकी
मेरी ओर,
हवा का रुख
मेरा पुरजोर।
न कोई अवरोध
निष्कंटक
बढ़ना पथ पर,
'महानता का
मैं अवतार'
शेष सब झाडूमार।
'शुभम्' स्वर्ण अक्षर में
लिखना है अपना नाम,
कहो मत तानाशाह
एक मैं ही तो
युग का भामाशाह,
सभी करते हैं
मुझसे डाह।
●शुभमस्तु !
04.01.2024● 5.00प०मा०
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