गुरुवार, 25 जनवरी 2024

काजर की कोठरी ● [ व्यंग्य ]

 038/2024 

 

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●© व्यंग्यकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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         जीवन रूपी नदी की अतल गहराई   में  उसकी   थाह  लेने के प्रयास में ऐसा बहुत कुछ मिला  जो उसके लिए  अनिवार्य है। जब गहराई में उतरेंगे सीप,शंख,मोती, घोंघे,सिवार,मछली,मेढक,कंकड़,पत्थर आदि कुछ भी हाथ लग सकता है।अब यह अलग बात है कि आप क्या खोजने निकले थे और क्या हाथ लगा? अपनी खोज के दौरान मुझे जो हाथ लगा है; वह  मानव जीवन की बहुमूल्य चीज है ,जिसे आपके समक्ष रखते हुए प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। वह ऐसी वस्तु है ,जिसका नाम ऊपर दर्शाई गई वस्तुओं में सम्मिलित नहीं है। उस अमूल्य और आवश्यक वस्तु का नाम है : 'ढकोसला'। जानकर और सुनकर आपको आश्चर्य भी हो सकता है ,किन्तु इस छोटी-सी खोज के लिए आश्चर्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

   'ढकोसला' जीवन का आवश्यक तत्त्व है। इसके बिना समाज,धर्म,राजनीति,जनतंत्र,कर्मकांड,रहन- हन,आहार- विहार,लोकाचार,देशाचार आदि चल नहीं सकता। इसीलिए इसे आवश्यक अंग न मानकर आवश्यक तत्त्व माना गया है।आप मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में घुस जाइए ; बिना ढकोसले के काम चल ही नहीं सकता।आपके किसी भी क्रिया कर्म की गाड़ी ढकोसले के ईंधन के बिना गति नहीं पकड़ सकती।

'ढकोसला' शब्द की गहनता से पड़ताल करने पर ज्ञात होता है कि   'जो हमारे जीवन और कर्म की असलियत को ढँक दे,और बाहर कुछ और ही दिखाई दे तथा उसकी अंतर्वस्तु कुछ और ही हो ,वही है 'ढकोसला'।' मानव देह धारी जंतुओं में भला ऐसा भी कोई है ,जो ढकोसला प्रिय न हो ?

साधु ,संत,मंत्री, अधिकारी,पंडा- पुजारी,मानव देहधारी इस  विशेषता से अछूता नहीं है। ऐसा कोई देह या मन नहीं है ,जहाँ ढकोसला - वास न हो!कहीं पर इसे सभ्यता के नाम से तो कहीं पर संस्कार के नवनीत से लीपा-पोता  जाता है। ढकोसला कहने में किंचित भद्दा लगता है न ! इसलिए उसे स्थान - स्थान पर अलग - अलग रूपाकार दे कर समृद्ध किया जाने का विधान है।यथार्थ की नग्नता को मखमली चादर से ढँकने का नाम ही ढकोसला है।

यदि धर्म ,राजनीति या किसी अन्य क्षेत्र का कोई उदाहरण दिया जाए तो सामान्य  कहन में उपहास ही कहा जाएगा।इसलिए मानवीय ढकोसले के उदाहरण देना उनका तंज माना जायेगा। लेखकीय धृष्टता न मानी जाए तो  यह कहना उचित ही होगा कि यदि पुलिस की वर्दी न हो और उसे सामान्य जन की तरह रहने दिया जाए तो क्या अपराधी और समाज के अवांछनीय तत्त्व निरंकुश नहीं हो जाएंगे?इसी प्रकार बिना तिलक छाप या कंठी माला के क्या समाज पंडे पुजारियों को ससम्मान महत्त्व प्रदान करेगा ? नेताओं को अपनी चुस्त दुरुस्त   नेताई के लिए ऐसा कुछ ओढ़ना पड़ता है कि उसे नेता समझा जाए !अपनी महत्त्वाकांक्षा को सशक्त बनाने के लिए कुछ प्रदर्शनात्मक आवरण अनिवार्य हैं।

         सामान्य शब्दों में कहा जाए तो 'ढकोसला'  किसी व्यक्ति,पद, संस्था, क्रिया,कार्य,अनुष्ठान आदि की चमक -  दमक  और लोक प्रियता बढ़ाने का उत्कृष्ट साधन है ।यही कारण है कि वह अब साधन मात्र न रहकर अनिवार्य तत्त्व बन गया है। कभी -कभी तो आदमी ढकोसले के लिए उधार माँगकर भी काम चला लेता है।जैसे विवाहार्थी कन्या को दिखाने के लिए सोफा,क्रॉकरी चादर आदि अपने पड़ौसी से माँग ली जाती हैं।ढकोसलों की यदि एक सूची बनाई जाए तो एक महा ग्रंथ ही लिख जाए! निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि ढकोसला मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। मानवीय सभ्यता और संस्कृति की सारी चमक -  दमक इन्हीं ढकोसलों से है। यदि मानवीय ढकोसलों पर शोध किये जाँय तो कई बृहत शोध प्रंबंध तैयार हो सकते हैं।माया मोह से विरक्त भी ढकोसलों से बच नहीं सके हैं। वे भले ही यह दावा करें कि वे उनसे बचे हुए हैं ,तो भी वे उनसे बच नहीं सकेंगे। फिर यदि हमारे लोकप्रिय माननीय नेताजी या 

अन्य सामाजिक यदि ढकोसलों के ढेर में दबे हुए हैं तो बेचारों/बेचारियों का दोष ही क्या ? ये जगत तो काजर की कोठरी है! 'काजर की कोठरी में कैसौ हू सयानों जाय ,एक लीक काजर की लागि है पै लागि है।'

● शुभमस्तु !

24.01.2024● 11.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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