009/2024
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम रमे हैं
प्रति कण-कण में
चर्म-चक्षु तू खोल।
अंतर पट पर
चित्र राम का
बना हुआ है एक।
बुद्धि नहीं जा
सके वहाँ तक
जाने मात्र विवेक।।
दीन दुखी की
आहों में वह
रहता सदा अबोल।
मन से जपना
राम - राम नित
वही जीव का प्राण।
जन्म वही है
देता सबको
करता भी वह त्राण।।
राम आदि हैं
अंत न उनका
कहते दुनिया गोल।
खग ढोरों से
अलग बनाया
मानव की दी देह।
जीव जीव का
हंता क्यों है
तुझे दिया है नेह।।
'शुभम्' अहं को
त्याग इसी पल
प्रेम सदा अनमोल।
● शुभमस्तु !
07.01.2024 ●9.30आ०मा०
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