बुधवार, 31 जनवरी 2024

जीवन एक जहाज ● [दोहा ]

 43/2024

     

[विधान,जहाज,पलक,संदूक,मरुथल]

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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              ● सब में एक ●

सबका विहित विधान है,अगजग कोई जीव।

नर-नारी   कोई   बने,  कोई   जन्मे    क्लीव।।

चलती  सृष्टि  विधान  से, पूर्वापर      सम्बंध।

कनक सुमन पाटल सभी,पृथक्-प्रथक्  है गंध।।


जीवन  एक  जहाज  है,लाद कर्म  का  भार।

धीरे-धीरे   गमन   कर,  जाता   है भव   पार।।

तन - जहाज निधि में पड़ा,बैठा मन का कीर।

उड़ता फिर आ बैठता, किंचित उसे  न  धीर।।


पलक झपकते   बीतती, जीवन  की  ये   रैन।

हाय - हाय  करता रहे, फिर  भी लेश  न चैन।।

पलक पाँवड़े  दूँ बिछा, मैं प्रियतम  की  गैल।

करता  हो  विश्वास  वह,यदि न हृदय  में मैल।।


निज   उर के  संदूक में,रखें छिपा   कर  राज।

कभी न  संकट  झेलना,  पड़े खुजानी   खाज।।

खुले  पड़े संदूक - सा, जिनका जीवन    मीत।

रिक्त  सदा  रहता  वही,चलता गति   विपरीत।।


कर्मों  का  परिणाम है,मरुथल या  वन - बाग।

मानव  जीवन   सींचिए, भरके नव   अनुराग।।

मरुथल में  ही  दीखती, मृग मरीचिका  मित्र।

नयनों  का  वह  छद्म  है,दिखते उलटे  चित्र।।


           ● एक में सब ●

विधि विधान निर्मित बड़ा,

                            जीवन एक जहाज।

पलक ढले मरुथल बने,

                              नहिं संदूक विराज।।


*विराज = सूर्य,ब्रह्मांड में सबसे बड़ा।


●शुभमस्तु !


30.01.2024●10.30प०मा०

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