43/2024
[विधान,जहाज,पलक,संदूक,मरुथल]
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
सबका विहित विधान है,अगजग कोई जीव।
नर-नारी कोई बने, कोई जन्मे क्लीव।।
चलती सृष्टि विधान से, पूर्वापर सम्बंध।
कनक सुमन पाटल सभी,पृथक्-प्रथक् है गंध।।
जीवन एक जहाज है,लाद कर्म का भार।
धीरे-धीरे गमन कर, जाता है भव पार।।
तन - जहाज निधि में पड़ा,बैठा मन का कीर।
उड़ता फिर आ बैठता, किंचित उसे न धीर।।
पलक झपकते बीतती, जीवन की ये रैन।
हाय - हाय करता रहे, फिर भी लेश न चैन।।
पलक पाँवड़े दूँ बिछा, मैं प्रियतम की गैल।
करता हो विश्वास वह,यदि न हृदय में मैल।।
निज उर के संदूक में,रखें छिपा कर राज।
कभी न संकट झेलना, पड़े खुजानी खाज।।
खुले पड़े संदूक - सा, जिनका जीवन मीत।
रिक्त सदा रहता वही,चलता गति विपरीत।।
कर्मों का परिणाम है,मरुथल या वन - बाग।
मानव जीवन सींचिए, भरके नव अनुराग।।
मरुथल में ही दीखती, मृग मरीचिका मित्र।
नयनों का वह छद्म है,दिखते उलटे चित्र।।
● एक में सब ●
विधि विधान निर्मित बड़ा,
जीवन एक जहाज।
पलक ढले मरुथल बने,
नहिं संदूक विराज।।
*विराज = सूर्य,ब्रह्मांड में सबसे बड़ा।
●शुभमस्तु !
30.01.2024●10.30प०मा०
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