011/2024
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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राम-नाम के
उजियारे में
देखें नयन उघार।
जब तक भाव न
राम रूप का
नेह न आए पास।
अँधियारा ही
दिखता जग में
रहता सदा उदास।।
मन-मंदिर में
बिठा राम को
तब मुख राम उचार।
चुभती तुझको
सुई एक तू
खाता जीवन मार।
उचित कहाँ तक
हिंसा करता
बेवश पशु लाचार।।
करनी का फल
सबको मिलता
रहता नहीं उधार।
जीव वेदना
अनुभव करते
जो बेचारे मूक।
उनके मन से
आह निकलती
होती कभी न चूक।।
'शुभम्' समझ ले
इतना तय है
लिखते राम लिलार।
● शुभमस्तु !
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