गुरुवार, 25 जनवरी 2024

धर्मतंत्र की ढाल ● [ गीतिका ]

 31/2024

 

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● ©शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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लोकतंत्र   की    चाल     देखिए।

धर्मतंत्र      की   ढाल     देखिए।।


ज्योति   जलाए  रहें   लगन   की,

जलती    रहे    मशाल    देखिए।


पाप -  शाप   धोती    हैं   नदियाँ,

आया  है    शुभ    काल  देखिए।


आड़  धर्म की   पतित  -  पावनी,

कागा    बने      मराल    देखिए।


मीनों  को मोहित    करते   नित,

व्यस्त  बड़े   घड़ियाल    देखिए। 


तिलक   लगाए     बने    पुजारी,

चिकने  -   चुपड़े    गाल  देखिए।


टाँग  नहीं     कुर्सी    की    छोड़ें,

खाते     मेवा  -   थाल   देखिए।


धर्म-ध्वजा जकड़ी जिस दिन से,

भरी    तिजोरी    माल   देखिए।


बदले    वेश     भाँगड़ा     गाते,

कदमों  की  नव   ताल   देखिए।


आम    सदा   चुसता  ही आया,

होता   नित्य   कमाल    देखिए।


'शुभम् '  राम   सबके  उद्धारक,

फैला  कैसा     जाल     देखिए।


●शुभमस्तु !


18.01.2024●6.00प०मा०

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