31/2024
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● ©शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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लोकतंत्र की चाल देखिए।
धर्मतंत्र की ढाल देखिए।।
ज्योति जलाए रहें लगन की,
जलती रहे मशाल देखिए।
पाप - शाप धोती हैं नदियाँ,
आया है शुभ काल देखिए।
आड़ धर्म की पतित - पावनी,
कागा बने मराल देखिए।
मीनों को मोहित करते नित,
व्यस्त बड़े घड़ियाल देखिए।
तिलक लगाए बने पुजारी,
चिकने - चुपड़े गाल देखिए।
टाँग नहीं कुर्सी की छोड़ें,
खाते मेवा - थाल देखिए।
धर्म-ध्वजा जकड़ी जिस दिन से,
भरी तिजोरी माल देखिए।
बदले वेश भाँगड़ा गाते,
कदमों की नव ताल देखिए।
आम सदा चुसता ही आया,
होता नित्य कमाल देखिए।
'शुभम् ' राम सबके उद्धारक,
फैला कैसा जाल देखिए।
●शुभमस्तु !
18.01.2024●6.00प०मा०
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