बुधवार, 31 जनवरी 2024

सेवक ● [ चौपाई ]

 41/2024

              

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सेवक    वही    करे    जो   सेवा।

मिले   बाद    में    उसको   मेवा।।

जन सेवक  बन   नाम     कमाते।

नारों  से  जन     खूब     रिझाते।।


स्वार्थ  बिना   सेवा    जो  करता।

निर्धन  -  उदर  अन्न   से  भरता।।

सेवक  वह    साँचा     कहलाता।

दुनिया  भर  में     नाम  कमाता।।


सदा     राम   की    सेवा  करते।

पल को   राम न उन्हें   बिसरते।।

सीता   खोज  लौट   हनु   आए।

समाचार  शुभ   उन्हें     सुनाए।।


सेवक-धर्म  कठिन  अति  होता।

सदा  जागता  कभी  न   सोता।।

नेता   जो     सेवक     कहलाते।

जन - जन को   झूठा   बहलाते।।


मन में कपट न   जिसके   होता।

सेवक  पद  वह  सही   सँजोता।।

लखन भरत-से   जिनके   भ्राता।

वही  राम कण-कण  बस जाता।।


रँगे    वेश   जो     सेवक    बनते।

धनुष  सदृश  जनता    में    तनते।।

अखबारों     में     नाम    छपाते।

छायाचित्रों       में        मुस्काते।।


'शुभम्' न   सेवक   पीट   ढिंढोरा।

कहे न   मैं     हूँ     सेवक   तोरा।।

कर्मों   से    वह    देह     सजाता।

जन सेवक जग   में    कहलाता।।


●शुभमस्तु !


29.01.2024●11.30आ०मा०

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