41/2024
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सेवक वही करे जो सेवा।
मिले बाद में उसको मेवा।।
जन सेवक बन नाम कमाते।
नारों से जन खूब रिझाते।।
स्वार्थ बिना सेवा जो करता।
निर्धन - उदर अन्न से भरता।।
सेवक वह साँचा कहलाता।
दुनिया भर में नाम कमाता।।
सदा राम की सेवा करते।
पल को राम न उन्हें बिसरते।।
सीता खोज लौट हनु आए।
समाचार शुभ उन्हें सुनाए।।
सेवक-धर्म कठिन अति होता।
सदा जागता कभी न सोता।।
नेता जो सेवक कहलाते।
जन - जन को झूठा बहलाते।।
मन में कपट न जिसके होता।
सेवक पद वह सही सँजोता।।
लखन भरत-से जिनके भ्राता।
वही राम कण-कण बस जाता।।
रँगे वेश जो सेवक बनते।
धनुष सदृश जनता में तनते।।
अखबारों में नाम छपाते।
छायाचित्रों में मुस्काते।।
'शुभम्' न सेवक पीट ढिंढोरा।
कहे न मैं हूँ सेवक तोरा।।
कर्मों से वह देह सजाता।
जन सेवक जग में कहलाता।।
●शुभमस्तु !
29.01.2024●11.30आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें