016/2024
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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घना कोहरा
मौन विटप सब
प्राची का रँग लाल।
झाँक रहे हैं
सूर्य देवता
चादर ओढ़ सफेद।
फैलाते हैं
सजल रश्मियाँ
तनिक न करते भेद।।
उषा सुनहरी
मुख चमकाए
ठंडे - ठंडे गाल।
दृश्य मनोहर
तरु लतिका का
पौष मास की देह।
छूने में वह
लगती शीतल
नम धरती पर रेह।।
सन्नाटा- सा
पसरा बाहर
अंबर हुआ गुलाल।
आग जलाकर
कोई तापे
कोई ओढ़े शॉल।
कंबल का ले
संबल कोई
खेल रहा है बॉल।।
अगियाने को
घेर बैठते
बना आँच की ढाल।
●शुभमस्तु !
09.01.2024●9.15आ०मा०
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