42/2024
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● © शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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माघ मास में
थर-थर काँपे
जरा अवस्था गात।
शीत न छोड़े
पीछा अब भी
ढँके देह को खूब।
कंबल साफी
ओढ़े भारी
गए ठंड से ऊब।।
बुनी ऊन की
टोपी सिर पर
करती-सी ज्यों बात।
किंचित नाक
खुलीं दो आँखें
पड़ीं झुर्रियाँ देह।
बाहर कैसे
जाएँ वे अब
पड़े हुए निज गेह।।
घर पर रहें
उचित यह करना
दिन हो चाहे रात।
सघन कोहरा
जाल बिछाए
मचा रहा है धूम।
अगियाने पर
कब तक तापें
लेता है नभ चूम।।
गई जनवरी
शीत निगोड़ा
करे ओस बरसात।
●शुभमस्तु !
30.01.2024● 7.15 आ०मा०
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