001/2024
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दो हजार चौबीस के, नए वर्ष का भोर।
मंगलमय हो विश्व को,मिले हर्ष पुरजोर।।
घर-घर में आनंद हों,विकसित भारत देश,
मनसा, वाचा,कर्मणा,उर सत्कर्म- हिलोर।
कविता में शुभ भाव के,आएँ शब्द नवीन,
मातु शारदा की कृपा, के नाचें उर-मोर।
जन हितकारी काव्य की,रचना हो इस वर्ष,
ममता,करुणा,प्रेम से, जन हों भाव विभोर।
सीमा पर हो शांति नित,आए देश सुराज,
नेताओं की बुद्धि हो, निर्मल शुद्ध अँजोर।
शोषण भ्रष्टाचार का, हो विनाश परिपूर्ण,
बदले वेश समाज में, मिटें दस्यु जन चोर।
'शुभम्' समय से मेघ दल,बरसाएँ शुचि नीर,
देश मुक्त दुर्भिक्ष हो,गति विकास की ओर।
●शुभमस्तु !
01.01.2024●6.30आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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