020/2024
[शिक्षा,शिक्षक,शिक्षण,शिक्षार्थी,शिक्षालय]
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
शिक्षा का उद्देश्य है,निज व्यक्तित्व विकास।
जीवन में नर के नहीं, होता है उपहास।।
निज संतति को दीजिए,शिक्षा उचित अबाध।
जीवन की यह साधना,फलती सदा अगाध।।
शिक्षक की कथनी वही,जो करनी का रूप।
शिष्य सफल होते सभी, बनते हैं यश-यूप।।
पूर्ण नहीं होता कभी, शिक्षक लेकर ज्ञान।
तरु झुकता फल लाद कर,बढ़ता उसका मान।।
आजीवन शिक्षण करें,कभी न होते पूर्ण।
अहंकार जिस पल किया,सभी ज्ञान हो चूर्ण।।
मौलिक शिक्षण चाहिए,छोड़े अलग प्रभाव।
मानवता जिसमें दिखे, मिटें हृदय के घाव।।
सतत साधना रत रहे,बगुला जैसा ध्यान।
वही श्रेष्ठ शिक्षार्थी , सोए जैसे श्वान।।
ज्ञान -पिपासा लीन जो,पाता उत्तम ज्ञान।
श्रेष्ठ वही शिक्षार्थी, मिले जगत में मान।।
शिक्षालय बाजार हैं, बिकती शिक्षा नित्य।
उद्यम के वे केंद्र हैं, नष्ट किया औचित्य।।
शिक्षा की अवमानना, शिक्षालय में आज।
करें नकलची नित्य ही,झपटें डिग्री बाज।।
● एक में सब ●
शिक्षालय में अब हुआ,शिक्षा का व्यापार।
शिक्षक शिक्षण क्या करे, शिक्षार्थी लबार।।
●शुभमस्तु !
10.01.2024● 7.30आ०मा०
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