027/2024
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बाँध पोटली
रखे शीश पर
जाती ग्राम्या एक।
सरसों फूली
खेत -खेत में
दगरे पर बहु झाड़।
मूँज खड़ी है
कीकर बेरी
बना रहे हैं आड़।।
बकरी ढोरों
को खाने को
चारा लाई छेक।
पगडंडी पर
बने पाँव के
चिह्न, न बाकी घास।
घनी घास है
शेष अभी कुछ
चलने में कुछ खास।।
बाड़ लगी है
फसल-सुरक्षा
के हित लगी अनेक।
साड़ी उसकी
पीली अरुणिम
नीली पहन कमीज।
शिष्ट आचरण
से रहती वह
उर में ममता बीज।
'शुभम्' काम से
रखती मतलब
खोती नहीं विवेक।
●शुभमस्तु !
16.01.2024●12.30प०मा०
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