बुधवार, 17 जनवरी 2024

जाती ग्राम्या एक ● [ गीत ]

 027/2024

       

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●© शब्दकार

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बाँध पोटली

रखे शीश पर

जाती ग्राम्या एक।


सरसों फूली

खेत -खेत में

दगरे पर बहु झाड़।

मूँज खड़ी है

कीकर बेरी

बना रहे  हैं आड़।।


बकरी ढोरों 

को खाने को

चारा लाई छेक।


पगडंडी पर

बने पाँव के

चिह्न, न बाकी घास।

घनी घास है

शेष अभी कुछ

चलने में कुछ खास।।


बाड़ लगी है

फसल-सुरक्षा

के हित लगी अनेक।


साड़ी उसकी

पीली अरुणिम

नीली पहन कमीज।

शिष्ट आचरण 

से रहती वह

उर में ममता बीज।


'शुभम्' काम से

रखती मतलब

खोती नहीं विवेक।


●शुभमस्तु !


16.01.2024●12.30प०मा०

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