शनिवार, 13 जनवरी 2024

उर में रहते राम ● [ गीत ]

 010/2024

        

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●


भक्त के उर में

रहते राम

झाँक ले हृदय-भीतर।


सोना चाँदी 

में यदि होते

पाते धनिक अमीर।

कथरी ओढ़े

पा लेते हैं

उनको संत कबीर।।


राम जपे जो 

साँचे मन से

आम विटप या कीकर।


 जो आया है

उसको जाना

कब तक प्रभु ही जाने।

कुछ भी नहीं

जीव के वश में

कब तक चलें तराने।।


वही सफल क्षण

रमे राम में

क्या करना अति जीकर।


धन को जोड़ा

जपा न थोड़ा

तूने जो हरि नाम।

माया के वश

रहा रात दिन

चाह कामिनी काम।।


'शुभम्' मनुज की

देह धन्य तब

जिए राम-रस पीकर।


●शुभमस्तु !


07.01.2024● 10.00आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...