शनिवार, 13 जनवरी 2024

प्रेम ● [चौपाई ]

 014/2024

                

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

सकल   सृष्टि  में   प्रेम  पसारा।

बहती   जहाँ  सृजन  की  धारा।।

जीव, जंतु,   पशु,   पक्षी  न्यारे।

बने  प्रेम   के   रस     से   सारे।।


पति -पत्नी जग   के   नर-नारी।

सुमनित करते जग की क्यारी।।

प्रेम  धरा  का    अमृत    प्यारा।

बहती  ज्यों   गंगाजल    धारा।।


बढ़ती घृणा  नित्य  क्यों जाती?

प्रेम अंश  को   यहाँ   नसाती।।

प्रेम -  दान   से     प्रेम   बढ़ेगा।

मानवता  के   शिखर   चढ़ेगा।।


इजरायल हमास   क्यों  लड़ते?

क्यों न प्रेम का   पर्वत   चढ़ते??

खून खराबा   उचित   नहीं   है।

किसी ग्रंथ  में  नहीं   सही   है।।


कहाँ  पुतिन का  प्रेम  गया  है?

मरी हृदय  की   पूर्ण   दया है।।

प्रेम -   रीति  भारत   से सीखे।

पाक अंध को   प्रेम   न दीखे।।


राधाकृष्ण   प्रेम    के     राही।

बृज भर ने   गाथा  अवगाही।।

गोपी श्याम    प्रेम    से  भारी।

गूँजी कुंज गली   वन  क्यारी।।


प्रेम - वंशिका    कृष्ण  बजाई।

दौड़ी - दौड़ी    गोपी      धाई।।

नंद   यशोदा   देवकि     मैया।

दाऊ कृष्ण  प्रेम  रस    छैया।।


'शुभम्' प्रेम की   धार   बहाएँ।

घर -घर में  नित स्वर्ग  बसाएँ।।

बैर  छोड़  भारत   को  भर  दें।

प्रेम सुधा आप्लावित   कर  दें।।


● शुभमस्तु !


08.01.2024● 11.30 आ०मा०

                ●●●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...