251/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
नेता अलग प्रजाति है, मनुज जाति से भिन्न।
नहीं चाहती एकता, जन-जन करती छिन्न।।
जन - जन करती छिन्न, रंग में भंग कराना।
नेताओं का काम, कथा में गधा चलाना।।
'शुभम्' चरित बदरंग,नहीं कुछ जन को देता।
मानव - दानव बीच,विकसता सच्चा नेता।।
-2-
कहता पूरब जा रहा, जाता पश्चिम ओर।
नेता की पहचान ये, साँझ बताए भोर।।
साँझ बताए भोर, हृदय का राज अजाना।
मरा आँख का नीर, समय पर कभी न आना।।
'शुभम्' अलग ही धार,नदी के साथ न बहता।
मुख से साँचे बोल,भूल वह कभी न कहता।।
-3-
आशा नेता से नहीं, करना कोई मीत।
झूठे उसके बोल हैं, चले चाल विपरीत।।
चले चाल विपरीत, दिलाए बस आश्वासन।
ठगता सारा देश, बाँटकर चीनी राशन।।
'शुभम्' न देना काम,देश सब इससे नाशा।
रहो भरोसे राम, झूठ ही देता आशा।।
-4-
नेता ऐसा चाहिए, कथनी करनी एक।
सत चरित्र से युक्त हो, जिसमें भरा विवेक।।
जिसमें भरा विवेक, देश आगे ले जाए।
लफ़्फ़ाजी से दूर, नहीं ऑंखें दिखलाए।।
'शुभम्' बने आदर्श, कीर ज्यों अंडे सेता।
जन में न हो अमर्ष, देश सेवक हो नेता।।
-5-
कोई नेता क्यों बना, अलग - अलग है लक्ष्य।
धन अर्जन कोई करे, खाता भक्ष्य-अभक्ष्य।।
खाता भक्ष्य -अभक्ष्य, चरित का कोई हेटा।
सात पीढ़ियाँ धन्य, दीखते बेटी - बेटा।।
'शुभम्' स्वप्न साकार, हुए जब फसलें बोई।
लादे धन की खेप, बना यों नेता कोई।।
शुभमस्तु !
31.05.2024●7.00आ०मा०
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