449/2024
पाने को कुछ पड़ता तपना।
सदा देखना ऊँचा सपना।।
लगे हुए सीधा करने में,
दुनिया वाले उल्लू अपना।
दृष्टि अन्य के धन पर उनकी,
राम - नाम की माला जपना।
पूछ नहीं निर्धन की कोई,
धनिकों के ही सम्मुख झुकना।
मेरा - मेरा करते बीता,
नहीं जानता पल भर रुकना।
बिना काम के नाम चाहते,
समाचार सुर्खी में छपना।
जननी - जनक न पूज्य मानते,
'शुभम्' न चाहें सेवा करना।
शुभमस्तु !
29.09.2024●10.30 आ०मा०
●●●
सोमवार, 30 सितंबर 2024
देखना ऊँचा सपना [ गीतिका ]
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
किनारे पर खड़ा दरख़्त
मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें