शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

एक दिया उनकी सेवा में [ गीत ]

 494/2024

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


एक दिया

उनकी सेवा में

सब जन  ज्योति जलाना।


पत्नी बालक

मात - पिता को

छोड़े हुए खड़े हैं।

नेह भाव

उनके भी मन में

घर को छोड़ पड़े हैं।।

घर से अधिक

देश ही प्यारा

उनको शीश झुकाना।।


माँ कहती

पापा आएँगे

लेकर  खेल खिलौने।

कपड़े खील 

मिठाई घी की

ज्योति जले हर कोने।।

किंतु उन्हें

छुट्टी न मिली है

फिर कैसा  घर आना?


सीमा पर 

तैनात वीर को

कवि यह शीश नवाता।

राष्ट्र धर्म है

पहले जिसको

कैसे  दीप  जलाता !!

'शुभम्' वही 

भगवान हमारे

शुभचिंतक निज जाना।


शुभमस्तु !


01.11.2024●4.45प०मा०

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