बुधवार, 4 दिसंबर 2024

रंग शुभद हेमंत [दोहा]

549/2024

             

[हठधर्मी,हेमंत,त्याग,साधना,समाज]

                     सब में एक

देश न व्यक्ति समाज को,हठधर्मी शुभ नेक।

होता   हितकारी   नहीं, सोया  हुआ विवेक।।

करना   प्रथम   विचार  ये, ऐ हठधर्मी   मूढ़।

सत्य  नहीं  जो  सोचते,   मेष   पृष्ठ  आरूढ़।।


ऋतु  आई   हेमंत  की,सुखद शीत  विस्तार।

धूप गुनगुनी  भा  रही,तन-मन बढ़ा निखार।।

रंग   शुभद  हेमंत  है,  विकसे गेंदा    फूल।

तितली  उड़ें   पराग ले, ओढ़े   पीत दुकूल।।


त्याग दिया  घर -बार  भी, बुद्ध बने  सिद्धार्थ।

क्यों मानव को  दुःख है, करे मनुज परमार्थ।।

त्याग भाव में  व्यक्ति का, निवसित  परमानंद।

संग्राही    क्या    जानता,रसमयता का   छंद??


मानव   जीवन साधना, करने का  सुविवेक।

जन - जन  को  होता नहीं,करे कर्म की  टेक।।

रहे   साधना  लीन  जो, करे  प्राप्त    गंतव्य।

देवोपम  नर  है  वही, बने  मनुज वह दिव्य।।


करता  है  शुभ  कर्म जो, दे  सम्मान समाज।

बिना कर्म मिलता नहीं,मान न कल या आज।।

सुदृढ़  श्रेष्ठ  समाज  का, साहित्यिक  सम्बंध।

उच्च  शिखर आसीन कर,बिखरे सुमन सुगंध।।

                 एक में सब

हठधर्मी   से जो रहे,   त्याग साधना    हीन।

पल्लव   है हेमंत का,वह समाज  अति  दीन।।


शुभमस्तु !


04.12.2024●5.30आ०मा०

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