बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

त्रिवेणी में डुबकी [ दोहा ]

 062/2025

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


डुबकी  लगा प्रयाग  जा,तीर्थ  त्रिवेणी  घाट।

मेला  मानव  कुंभ  का, लगता  बड़ा विराट।।

गंगा  यमुना  सरस्वती, का   संगम पहचान।

डुबकी   वहाँ  लगाइए, मिटे  पाप की  खान।।


गंगा  जैसी    पावनी,  नदी   जगत  में   एक।

नहीं  मित्रवर   जाइए,  डुबकी   लगा  अनेक।।

बारह   वर्षों   बाद   ये ,   आया  कुंभ   महान।

डुबकी  से  तर  जायगी,अघ ओघों की खान।।


साधु - संत  ज्ञानी  बड़े,ध्यानी शिव के भक्त।

डुबकी ले- ले मग्न   हैं, हर - हर में अनुरक्त।।

नग्न  देह  नागा   चले,  कुछ   हैं  संत  अघोर।

डुबकी   में  अनुरक्त  हैं, भ्रमण करें चहुँ ओर।।


नेता अभिनेता  सभी,  धनिक खिलाड़ी   मीत।

आम  खास सब जा रहे,डुबकी लगा  सप्रीत।।

चोर  गबनकर्ता    चले,  करें  मिलावट   नित्य।

डुबकी से   हलके   करें,  पाप  यही औचित्य।।


डुबकी  से जो पाप भी, धुल  जाते यदि मित्र।

पुलिस  न  रखें   अदालतें, बदलें बुरे  चरित्र।।

जज   अधिवक्ता  व्यर्थ  ही,रखे हुए  सरकार।

डुबकी   से  अपराध  जो,बहें  देह के    पार।।


गंगाजल में   शक्ति   है,धोने   की यदि    पाप।

तो  डुबकी  पर्याप्त  है, मिटें  जगत जन  ताप।।


शुभमस्तु !


04.02.2025● 9.00 प०मा०

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