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✍️ शब्दकार ©
🦆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पितुगृह से पतिगृह चली,कहलाया ससुराल।
पाया प्रीतम प्यार जब,खिलकर हुई मराल।
किया न श्रम तन से कभी मिली नर्म सी सेज
उदर फूल ऊँचा हुआ, फूले तन मन गाल।
कर पूरे नव मास भी,पहुँची नर्सिंग होम,
शुभ वेला भी आ गई,खड़ा सामने काल।
चीरफाड़ को उदर की,विवश हुआ परिवार,
सिजेरियन ही शेष थी, बन कर आई ढाल।
सदा विलासों से भरा,देता जीवन कष्ट,
नहीं बोझ तन का उठे,यही आज जग-हाल।
पहले नारी की रही,प्रबल जीवनी - शक्ति,
फैशन और विलासिता,का फैला अब जाल।
'शुभम' कहे शुभ बात भी,देती उर को चीर,
चिड़ियाँ चुग लें खेत जब,ठोंकें खूब कपाल।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०८.२०२१◆१२.३० पत नम मार्तण्डस्य।
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