रविवार, 1 अगस्त 2021

चिड़ियाँ चुग लें खेत जब 🦆 [ दोहा -गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🦆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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पितुगृह से पतिगृह चली,कहलाया ससुराल।

पाया प्रीतम प्यार जब,खिलकर हुई मराल।


किया न श्रम तन से कभी मिली नर्म सी सेज

उदर  फूल  ऊँचा  हुआ, फूले तन  मन गाल।


कर  पूरे नव मास  भी,पहुँची नर्सिंग    होम,

शुभ  वेला भी आ  गई,खड़ा सामने   काल।


चीरफाड़ को उदर की,विवश हुआ परिवार,

सिजेरियन ही शेष थी, बन कर आई   ढाल।


सदा  विलासों   से भरा,देता जीवन    कष्ट,

नहीं बोझ तन का उठे,यही आज जग-हाल।


पहले  नारी की रही,प्रबल जीवनी - शक्ति,

फैशन और विलासिता,का फैला अब जाल।


'शुभम' कहे शुभ बात भी,देती उर को चीर,

चिड़ियाँ चुग लें खेत जब,ठोंकें खूब कपाल।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०८.२०२१◆१२.३० पत नम मार्तण्डस्य।

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