बुधवार, 19 अप्रैल 2023

लदे टिकोरे 🌳 [ गीत ]

 172/2023

    

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✍️शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अमराई की  घनी  छाँव में,

'शुभम्'गया सानंद  गाँव में,

लदे  टिकोरे।


विनत भाव से झुक-झुक आईं,

लदीं  टिकोरों  से  नत  डालें।

होड़   लगी   धरती  छूने की,

पोषण करती   भू माँ पा लें।।

जिसने हमको पाला,

देकर नेह -  निवाला,

कैसे हों कृतकृत्य  जननि  से,

छू   कर  गोरे।


नवल किशोरी  युवती बाला,

अमराई  में चहक   रही   हैं।

अमिया   हरी  खटाई  वाली,

खाने को  वे बहक वहीं  हैं।।

मुँह में  पानी आए,

देख आम तरसाए,

तोड़ रहीं   पाहन उछाल  वे,

पहुँचे    कोरे।


तन-मन जगी लालसा कैसी,

चाहें  स्वाद   खटाई   खाएँ।

नारी  का  यौवन   पुकारता,

तन-उद्यनिका को  महकाएँ।।

अमराई   में   जाएँ,

छील दाँत से खाएँ,

प्रकृति की इस मौन माँग में,

हिया   हिलोरे।


आओ   राधा,     चंपा,   हेमा,

हाथ हिलाकर   हमें   बुलाएँ।

नव  रसाल   की  शाखाएँ  वे,

दिखलातीअनगिनत कलाएँ।।

यौवन की बढ़वारी,

चाह रही  हर बारी,

'शुभम्' रसीली बनकर रस दें,

नहीं न छोरे।


🪴 शुभमस्तु !


18.04.2023◆9.15आ०मा०

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