रविवार, 9 अप्रैल 2023

ग़ज़ल 🌴

 157/2023

       

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🌴 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

मुझको  तुम्हारे   दर्द   का शजरा न  मिला।

महका  गुलाबी  जिस्म वो गजरा न मिला।।


किसको     बताएँ   हाल   जाए   न   कहा,

खोया   तुम्हारे   पास   ही खसरा  न मिला।


ख़ुशबू    दहकते   हुस्न   की बसती   बदन,

तुमसे   तुम्हीं  हो  एक  ही दुसरा  न मिला।


मरता   नहीं   है   इश्क़ ये सौ - सौ    जनम,

देनी  पड़ेगी    दाद   तिरा जिगरा  न  मिला।


आँखें  तो   देखीं  खूब    ही सूरत   'शुभम्',

आँखों  से लेता  जान  जो  कजरा न मिला।


🪴शुभमस्तु !


09.04.2023◆2.30प०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...