173/2023
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छंद -विधान:
1.08 सगण (112×8)+गुरु(2)=25 वर्ण।
2.समतुकांत चार चरण का वर्णिक छंद।
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
रवि क्रोध करै तपती धरती,
तरु जीव भए अति व्याकुल सारे।
सब माँगि रहे कछु वारि मिलै,
चलते -चलते पथ में जन हारे।।
तरु पीपर पात हिलाइ रहे,
दल काँपत से ध्वनि देत सकारे।
मुख ढाँप चलै पथ में सजनी,
घन अंबर में घुमड़ें न बिचारे।।
-2-
बगिया-बगिया नित बौर झरें,
बढ़ते-बढ़ते हरिताभ टिकोरे।
नव यौवन के मद में युवती,
उचकाइ उछाल भरें पद पोरे।।
कछु पाहन हाथ लिए मचलीं,
चुरियां खनकीं पहुँची कर गोरे।
रसना खटियाइ भरी पनियाँ,
ढिंग आय तु आमनु तोरत छोरे।।
-3-
मधुमास सुभोर गुलाब खिले,
वन बागनु बंद खिलीं कलियाँ हैं।
इत कोकिल कूकि धमाल करै,
उत फूलनु फूलि रहीं डलियाँ हैं।।
टपकें टपका पकि आमन से,
भ्रमते तितली अलिहू गलियाँ हैं।
तरुणी तरसाइ रही पिय कों,
कित जाइ छिपे उर के छलिया हैं ।।
-4-
सरि जाइ रही निधि अंकनु में,
उठती गिरती मन मोद उमाही।
करती अभिसार दिवा-रजनी,
कलछू -कलछू सुर गावति राही।।
चलनों अजहूँ बहु कोसन में,
निधि खोलि खड़ौ अपनी दृढ़ बाँही।
सखि सीखि लियौ नित दान सदा,
नदिया कहतौ जग बाँटति छाँही।।
-5-
बसि के मथुरा कित भूलि गए,
मुरलीधर वे नंदलाल हमारे।
हति कंस दिए बहु दानवहू,
अब लौटि न देखत कंत दुलारे।।
दिन -रैन न चैन परै हमको,
नित प्राण जलें बिनु लाल तुम्हारे।
सब गाय गुपाल हताश भए,
रहि पावत नेंक न नाथ बिना रे।।
🪴शुभमस्तु !
18.04.2023◆2.30प.मा.
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