बुधवार, 12 अप्रैल 2023

कविता है शुचि साधना🪷 [ दोहा ]

 165/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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भावों  की  साकारता,है कविता   का   रूप।

दात्री   वीणावादिनी , बना रही  कवि   यूप।।

कविता  को मत जानिए,शब्दों  का  भंडार।

भाव,व्यंजना,छंद,रस,गति लय की चमकार।


कविता है शुचि साधना,करती जग कल्याण।

जन-जन,देश,समाज में,भरती है नित प्राण।

कविता-वाणी सत्य की,नहीं अनृत का काम

कविउर शांति प्रदायिका,चले न सतपथ वाम


कविता अर्जन का नहीं, साधन जानें आप।

ज्ञान-भानु चढ़ता रहे,मिटें जगत के ताप।।

सतत साधना कीजिए, नित्य निरंतर मीत।

कविता शुभकारी सदा,होता स्वयं  प्रतीत।।


कंचन कामिनि की करें,कविता से मतआश।

उर की निर्मलकारिणी,कविमानस का प्राश।

कविता मानव-मूल्य की,रक्षक सदा असीम।

पाप-ताप काटे सदा,तन-मन निवसित भीम।


होती गुरु,माँ की कृपा,कविता करता व्यक्ति।

माला महके शब्द की,मिले अपरिमित शक्ति

निंदा-रस लेना नहीं,कविता में क्या  काम!

नहीं विमुख हो सत्य से,कवि का होता नाम।


कविता  से   मन-देह  के,  होते दुर्गुण    दूर।

गंगावत  पावन  करे,पाप  अहं   को   चूर।।


🪴शुभमस्तु !


12.04.2023◆6.45आ०मा०

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