मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

पैसा 💰 [ चौपाई ]

 162/2023

    

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✍️ शब्दकार ©

💰 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बहुविध  रूप   दिखाती माया।

एक रूप पैसा    की  काया।।

जगत-काज सब करता पैसा।

उसका चाल-ढाल ही  ऐसा।।


बालक   बूढ़े  नर   या   नारी। 

पैसा  अर्जन    की   बीमारी।।

सोते -  जगते     पैसा - पैसा।

पागल  हुआ  आदमी  ऐसा।।


दाल - भात,  भाजी या  रोटी।

जली-कटी या छोटी - मोटी।।

अन्न, दूध, फल   देता    पैसा।

सोना ,  चाँदी ,  गैया , भैंसा।।


देवालय  में     फूल    चढ़ाते।

गंध-दीप नित भक्त  जलाते।।

पैसा  बिना  प्रसाद    न पाएँ।

रिक्त हाथ वापस   घर जाएँ।।


कहे  पुजारी    धर  जा पैसा।

क्यों मैं सुनूँ  अपवचन वैसा।।

मुझे  दक्षिणा   अभी  चाहिए।

दक्षिण कर  से अभी लाइए।।


राजकीय  या    कोई     सेवा।

करने   वाला    चाभे   मेवा।।

जो दहेज के    भुक्खड़ भाई।

पैसा के   हित   बनें  कसाई।।


कसकर  पैसा  नोट पकड़ता।

शिशु मुट्ठी में त्वरित जकड़ता।

भले दुधमुँहे   बालक-  बाला।

माया ने   कस  फंदा  डाला।।


सन्यासी     सब   चीवरधारी।

लिए  कटोरा बने   भिखारी।।

पैसा  बिना  न भरता    गड्ढा।

हो जवान बालक या  बुड्ढा।।


चले न गृहस्थाश्रम   की गाड़ी।

पैसा   बिना    रहेगी   ठाड़ी।।

नेता , धन्ना    सेठ,  महाजन।

पैसा बिना न चलता जीवन।।


कोई मैल   हाथ  का कहता।

पाई पकड़  दाँत    से रहता।।

ढोंगी  जन  की  बातें  छोड़ो।

पैसे से   सब     नाता जोड़ो।।


पैसा की  है  बड़ी    कहानी।

नित्य  नई है न    हो पुरानी।।

'शुभम्' न चाहे  जो नर पैसा।

पाखंडी  झूठा    वह   ऐसा।।


🪴शुभमस्तु !


10.04.2023◆11.30आ०मा०

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