141/2023
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।
शतशः नमन करूँ जननी को,
नित वंदन कर ध्याता।।
नौ - नौ मास उदर में धरती,
धरती - सी पोषण करती।
सहती भार गर्भ का माता,
आशामय जीवन भरती।।
जाया तन में पलते तन-मन,
उस जननी के गुण गाता।
माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।।
जन्म हुआ बाहर शिशु आया,
अति हर्षित मेरी भगवान।
मेरी गुरु तू प्रथम पूज्य माँ,
माँ जीवन का विशद वितान।
माँ के बाद पिता को पाया,
उनको कभी न कम पाता।
माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।।
गीले में सुख से सो लेती,
बिस्तर गीला हो जाता।
हर्षित होती देख - देख मुख,
जब सपने में मुस्काता।।
पल भर रोदन सहा न तूने,
अमर पुत्र - माँ का नाता।
माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।।
मेरे तन - मन या वाणी से,
कष्ट न माँ को हो पाए।
अनजाने भी नहीं सताऊँ,
ऐसा जीवन जल जाए।।
अहोभाग्य मम तू माँ मेरी,
वेदमंत्र मैं उद्गाता।
माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।।
तेरी आँखों में माँ आँसू,
पल भर देख नहीं पाता।
तेरे आँचल की छाया में,
भय बाहर का मिट जाता।।
शब्द नहीं वाणी में मेरी,
'शुभम्' सदा माँ-अनुराता।।
माँ के बिना व्यर्थ है जीवन,
माँ जीवन की त्राता।।
🪴शुभमस्तु !
02.04.2023◆4.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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