बुधवार, 19 अप्रैल 2023

कस्तूरी-सा चरित्र🪷 [ दोहा ]

 174/2023


[कस्तूरी,कबूतर, खेत,अशोक, दृष्टि]

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✍️ शब्दकार©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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      ☘️ सब में एक  ☘️

कस्तूरी-सा  कीजिए, अपना   चारु चरित्र।

नयन-दृष्टि पहुँचे नहीं,महकें सुजन सु-मित्र।।

मेरे  उर  के  मध्य  में,  तुम कस्तूरी-  गंध।

आनंदित  करती  सदा,प्रिय प्रेयसि  निर्बंध।।


देवी रति-वाहन  बना, शांत कबूतर  मीत।

प्रेमपत्र  ले  जा  वहाँ,  हुए बिना  भयभीत।।

आशा,शांति -प्रतीक है,परिवर्तन  का रूप।

दया भाव   ही  बाँटता, मीत कबूतर  यूप।।


खेत- खेत सोना उगे,अन्न, शाक,फल,फूल।

मेरे  भारत  देश  में,हो  समृद्धि   का  मूल।।

पकी फसल को खेत में,पाकर सभी किसान

हर्षित  होकर  देखते,संध्या 'शुभम्' विहान।।


मानव के हित के लिए,पीपल नीम अशोक।

तुलसी  आँगन  में खड़ी,दें बीमारी    रोक।।

जैसा तरु का  नाम है, वैसा उसका  काम।

छाँवदान नित ही करे,है अशोक शुभ नाम।


जैसी जिसकी दृष्टि है, वैसी उसकी सृष्टि।

नारी  माता,  कामिनी, करें नेह  की  वृष्टि।।

दृष्टि- भेद  से  मित्रता, पड़े खटाई    बीच।

जा   चौराहे   फेंकते,  मित्र परस्पर  कीच।।


       ☘️ एक में सब  ☘️

दृष्टि  खेत  की   मेड़  पर,

                      शोभित विटप अशोक।

कस्तूरी  मृग    छाँव   तर,

                             करे कबूतर  धोक।।


🪴शुभमस्तु !

19.04.2023◆6.30आ०मा०

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