सोमवार, 17 अप्रैल 2023

गीत वही है गेय 🌳 [ गीतिका ]

 170/2023

 


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 ✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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गीत वही है गेय, जहाँ कोकिल  की  लय है।

नहीं शब्द  का खेल,भाव नर्तन परिचय  है।।


जाना मत उस ठौर,मान का पान न मिलता,

मुरझाता उर-बौर,क्षीण हो जाती   वय    है।


स्वयं  चाहता   मान,  अहंकारी   ये  मानव,

करे न कौड़ी दान, दिखाता- सा अभिनय है।


वर्ण -भेद  का  रंग,  बहुत जाना   पहचाना,

सभी रहें जन -तंग,ध्येय मन में  अक्षय   है।


हृदय  कपट -भंडार,नेह ममता  से  खाली,

झूठा  लाड़ -  दुलार, क्रूरता का संचय  है।।


भूले छंद -विधान,  ताल  में टर -  टर  होती,

कवियों कीबारात,भेक की जय जय जय है।


'शुभम्' बिना ही स्वेद,पताका लहरे -फहरे,

गर्दभ गाते वेद,किसी को कुछ क्या भय है?


🪴शुभमस्तु !


170.4.2023◆3.00प०मा०

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