144/2023
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✍️शब्दकार ©
🩷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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प्रेम न मिला उधार,दीन संसार बड़ा।
सभी चाहते जीत, गले में हार बड़ा।।
करनी में हैं खोट, नहीं संज्ञान लिया,
राहें सकल असूझ,कहाँ उपकार बड़ा?
नहीं मानता दोष, लिप्त दुष्कर्मों में,
सदा सुफल की चाह, वचन-उद्गार बड़ा।
मिले बिना श्रम माल, तिजोरी कमरे भर,
देश - प्रेम का हाल,ज्वलित अंगार बड़ा।
नहीं चरित का मान, कनक ऊपर छाया,
सहे राष्ट्र आघात, संत से जार बड़ा।
बगुला भगत महान, टकटकी मछली पर,
पूज्य प्राप्त सम्मान, भले गद्दार बड़ा।
कैसे हो कल्याण, दुखी भारतमाता,
हुआ'शुभम्'को भान,यहाँ व्यभिचार बड़ा।
🪴शुभमस्तु !
02.04.2023◆11.00प.मा.
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