149/2023
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✍️ शब्दकार ©
👫 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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उठाधरी जो जितनी करता।
ऊँचा उसका नाम निखरता।।
पड़े - पड़े जो रोटी तोड़े।
नहीं दौड़ते उसके घोड़े।।
नहीं पड़ा बिस्तर में मरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
देखा होगा तुमने नेता।
नहीं किसी को कुछ भी देता।
नहीं चोर डाकू से डरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
नेता कभी न निर्भय होता।
गारद लगा चैन से सोता।।
साथ पुलिस को लिए विचरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
उठाधरी की भारी सेना।
करता धन का लेना- देना।।
पूँजीपति का नाम फहरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
गली शहर बाजार लगाता।
सेठ वही लाला कहलाता।।
गड्डी सजा तिजोरी भरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
उठाधरी तुम सीखो प्यारे।
काम बनेंगे पल में सारे।।
नहीं 'शुभम्'सुत कभी अखरता।
उठाधरी जो जितनी करता।।
🪴शुभमस्तु !
04.04.2023◆5.00प.मा.
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