रविवार, 9 अप्रैल 2023

धीरज -धनधारी धनी 🩷 [ दोहा ]

 158/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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धीरज- धनधारी    धनी, होते शांत   उदार।

आतुरता करते नहीं,पावन 'शुभम्' विचार।।

चुन-चुन शब्द सजाइए,शुचि रचना की माल।

आतुरता में भंग हो,छंद रसों   की   डाल।।


जननी  जनती जीव को,धीरज  धरे  महान।

आतुरता  करती नहीं,संतति   करे प्रदान।।

कवि -तापस की साधना,चलती धर के धीर।

आतुरता से अल्प दिन,बने न कवितावीर।।


आतुरता से  काम के,बिगड़ें  रूप   अनेक।

धरती धीरज धारिणी,गतिमय नित सविवेक।

आतुरता में  भूलता, सहज धैर्य  की चाल।

फूँक- फूँक पग जो रखे,उसका ऊँचा भाल।।


पढ़ - पढ़  ग्रंथ बढ़ाइए, शब्दकोष का ज्ञान।

अनुचित आतुरता'शुभम्',करिए अनुसंधान।

कहाँ करें किस शब्द का,सुंदर उचित प्रयोग।

आतुरता करना  नहीं,जान जलेबी - भोग।।


आतुरता में  जो   रहे, गिरे सप्त   सोपान।

कछुआ जीता दौड़ में ,हारा शशक अजान।।

आतुरता  में  भूलते,  रखा हुआ   सामान।

रोते   गाड़ी  में   चढ़े, छूट गया  धन - धान।।


🪴शुभमस्तु !


09.04.2023◆5.30 प०मा०


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