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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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धीरज- धनधारी धनी, होते शांत उदार।
आतुरता करते नहीं,पावन 'शुभम्' विचार।।
चुन-चुन शब्द सजाइए,शुचि रचना की माल।
आतुरता में भंग हो,छंद रसों की डाल।।
जननी जनती जीव को,धीरज धरे महान।
आतुरता करती नहीं,संतति करे प्रदान।।
कवि -तापस की साधना,चलती धर के धीर।
आतुरता से अल्प दिन,बने न कवितावीर।।
आतुरता से काम के,बिगड़ें रूप अनेक।
धरती धीरज धारिणी,गतिमय नित सविवेक।
आतुरता में भूलता, सहज धैर्य की चाल।
फूँक- फूँक पग जो रखे,उसका ऊँचा भाल।।
पढ़ - पढ़ ग्रंथ बढ़ाइए, शब्दकोष का ज्ञान।
अनुचित आतुरता'शुभम्',करिए अनुसंधान।
कहाँ करें किस शब्द का,सुंदर उचित प्रयोग।
आतुरता करना नहीं,जान जलेबी - भोग।।
आतुरता में जो रहे, गिरे सप्त सोपान।
कछुआ जीता दौड़ में ,हारा शशक अजान।।
आतुरता में भूलते, रखा हुआ सामान।
रोते गाड़ी में चढ़े, छूट गया धन - धान।।
🪴शुभमस्तु !
09.04.2023◆5.30 प०मा०
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