सोमवार, 17 अप्रैल 2023

पुरुष 🧘🏻‍♂️ [ चौपाई ]

 171/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🧘🏻‍♂️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कोमल  और   परुष  से सारी।

बनी सर्जना   प्रभु की न्यारी।।

पुरुष परुष  कोमल  है नारी।

बनी जगत की महिमा प्यारी।


पहले  परम  पुरुष ही आया।

बनी   बाद  में नारी -  काया।।

कहता  है  जग    सुंदर  नारी।

नारी  नर    से   होती  भारी।।


धन-ऋण का यह खेल रचाया।

जीव- जंतु सबको ही भाया।।

अंबर   पुरुष   धरा  है  नारी।

खिले सृष्टि संतति नित जारी।।


कामदेव   रति   रूप   सुहाए।

आकर्षित   हो   सृष्टि रचाए।।

जलचर थलचर नभचर नाना ।

परम पुरुष के विविध विधाना।।


गाड़ी   के   पहिए  नर -नारी।

संग   पुरुष   पत्नी   संचारी।।

दाता पुरुष ग्रहण वह करती।

करती तृप्त स्वयं तिय तरती।।


कम - ज्यादा की बुरी लड़ाई।

लड़े परस्पर   कलह   बढ़ाई।।

'शुभम्'एक पग चले न गाड़ी।

नारी पुरुष बिना  वह ठाड़ी।।


🪴शुभमस्तु !


17.04.2023◆5.15प०मा०

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