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✍️ शब्दकार ©
🧘🏻♂️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कोमल और परुष से सारी।
बनी सर्जना प्रभु की न्यारी।।
पुरुष परुष कोमल है नारी।
बनी जगत की महिमा प्यारी।
पहले परम पुरुष ही आया।
बनी बाद में नारी - काया।।
कहता है जग सुंदर नारी।
नारी नर से होती भारी।।
धन-ऋण का यह खेल रचाया।
जीव- जंतु सबको ही भाया।।
अंबर पुरुष धरा है नारी।
खिले सृष्टि संतति नित जारी।।
कामदेव रति रूप सुहाए।
आकर्षित हो सृष्टि रचाए।।
जलचर थलचर नभचर नाना ।
परम पुरुष के विविध विधाना।।
गाड़ी के पहिए नर -नारी।
संग पुरुष पत्नी संचारी।।
दाता पुरुष ग्रहण वह करती।
करती तृप्त स्वयं तिय तरती।।
कम - ज्यादा की बुरी लड़ाई।
लड़े परस्पर कलह बढ़ाई।।
'शुभम्'एक पग चले न गाड़ी।
नारी पुरुष बिना वह ठाड़ी।।
🪴शुभमस्तु !
17.04.2023◆5.15प०मा०
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