154/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌴 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पास नहीं तुम मेरे आना।
बाँहों के मत घेरे लाना।।
जली आग - सा मेरा तन है,
मुझे न भाए घेरे जाना।
आह- दाह बर्दाश्त न होगी,
चाहत मुझे उजेरे पाना।
कोई कब तक मुँह मत खोले,
सरसों - सा यों पेरे जाना।
माशूका महजबीं न नाज़ुक,
उम्दा है क्या फेरे खाना?
झूठी है तारीफ़ तुम्हारी,
ठगिआई अंधेरे छाना।
'शुभम्'खार झुरमुट में पलता,
नहीं चलेगा तेरा दाना।
🪴शुभमस्तु !
08.04.2023◆3.00प०मा०
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