शनिवार, 8 अप्रैल 2023

ग़ज़ल

 154/2023

      

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🌴 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

पास    नहीं  तुम  मेरे  आना।

बाँहों  के  मत    घेरे   लाना।।


जली  आग -  सा  मेरा तन है,

मुझे  न    भाए    घेरे  जाना।


आह- दाह  बर्दाश्त  न   होगी,

चाहत    मुझे    उजेरे   पाना।


कोई कब तक मुँह मत खोले,

सरसों - सा   यों   पेरे  जाना।


माशूका  महजबीं  न  नाज़ुक,

उम्दा  है  क्या   फेरे    खाना?


झूठी  है      तारीफ़    तुम्हारी,

ठगिआई     अंधेरे       छाना।


'शुभम्'खार झुरमुट में पलता,

 नहीं     चलेगा    तेरा   दाना।


🪴शुभमस्तु !


08.04.2023◆3.00प०मा०


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...