152/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सुघर चाँद में दाग मिला है।
इंसानों में नाग मिला है।।
झोपड़ियाँ दिन - रात कराहें,
बीच किले के बाग मिला है।
हंसों के सँग बगुले आए,
कोकिल - दल में काग मिला है।
गम है कोसों दूर ख़ुशी में,
बेवा - भाल सुहाग मिला है।
नहीं गाय का दूध सुहाता,
घर - घर बकरी - छाग मिला है।
गीत कौन सुमधुर है गाता,
नहीं कर्णप्रिय राग मिला है।
'शुभम्' रसायन खाती दुनिया,
जहरीला हर साग मिला है।
🪴 शुभमस्तु !
05.04.2023◆7.00प.मा.
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