शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

छन्दमाल्य परिकल्पना ☘️ [ दोहा ]

 179/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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छन्दमाल्य परिकल्पना,कुमकुम जी सुप्रसाद

गुंजित  बाराद्वार  में,प्रतिभा का   अनुनाद।।

'कौशल 'का कौशल यहाँ, छाया है चहुँ ओर।

गौरी जी   योगेश  का, होता चंचल   भोर।।


कहना क्या देवेश का,कौशल जी  का  नेह।

श्रम के सजल सुबिन्दु से, बरसाते रस-मेह।।

शुभम् कला कौशल यहाँ, है साहित्यिक मंच

'शुभदा'की छाया सघन,कौशलजी का संच


मुख्य अतिथि राकेशजी,छन्दमाल के चाँद

फैलाते  नव  चंद्रिका, सदा रहेगा   याद।।

आए  गोप  कुमार जी,सँग में मीत  दिनेश।

इधर  रमे  राकेश  जी,सुनिता के  प्राणेश।।


छंदबद्ध  रचना   नई, सुनकर हुए  विभोर।

उड़गन नभ में उड़ गए,ज्यों भागे हों चोर।।

धारानगरी  भोज  की,    उतरी   बाराद्वार।

कौशल दास महंत का,लगा काव्य -दरबार।।


रवि तेईस अप्रैल  का, बना नया  इतिहास।

वर्ष 'शुभम्' तेईस का,अपना एक  उजास।।

मिलाअकिंचन को यहाँ,'शुभं'सकल सम्मान।

आजीवन भूले नहीं, प्रियवर कौशल- शान।


गुरुवर के सम्मान से,होता 'शुभम्' विभोर।

कोस चार सौ पार कर,लेता हिया हिलोर।।

चलकर  सिरसागंज   से, पाया मौहाडीह।

चाँपा  बाराद्वार  में, कौशल जी   उर   ईह।।


मिट जाती कब दूरियाँ, उर की उर के बीच।

आते दोनों शीघ्र ही,होकर प्रकट   नगीच।।

ख्यातिलब्ध है आगरा, यू.पी.- मंडल  एक।

ब्रजभूमि  मथुरा  वहीं, यमुना धार  अनेक।।


ब्रजभाषी  मैं गाँव  का,जन्म आगरा  पास।

कर्मभूमि  में रोप कर,प्रभु ने दिया निवास।।

यमुना  की  रेती बड़ी ,पावन सुंदर    मीत।

लोट-लोट  ब्रज- रेणु में,गाए हैं  शुभ   गीत।।


पुनः - पुनः  आभार है,शब्द न मेरे    पास।

दिवस आज का है बना,पावनतम इतिहास।

है प्रभु से यह कामना,घटे न उर    का  नेह।

मिलें 'शुभं' कौशल सदा, क्षणिक नहीं संदेह।


🪴शुभमस्तु !


21.04.2023◆5.00आ.मा.

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