151/2023
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✍️ शब्दकार ©
🧕🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नारी जाया सृष्टि की,नारी से हम आप।
जननी जीवनसंगिनी,करिए दुर्गा - जाप।।
नारी कोमल कांत है,किंतु सुदृढ़ उर धार।
अतुल शक्ति से जूझती,नैया करती पार।।
नारी एक प्रहेलिका,नर को सदा अबूझ।
पात पात में पात है,रहती अलख असूझ।।
नारी ममता प्यार की,है अतुलित भंडार।
नर -वल्गा कर थामती, देती निज उपहार।।
नारी का विज्ञान मन, समझें नहीं अबोध।
पल भर में भाँपे तुम्हें,करती अंतर शोध।।
मोम और पत्थर मिला, नारी के उर देह।
बने कांत सुदृढ़ सभी, बरसाती गृह मेह।।
माया, साहस, अनृत का,नारी में है भाव।
अदया,भय,अविवेक भी,रहे चपलता-घाव।।
श्वेत श्याम दो पक्ष का,नारी में संयोग।
अंतर से पहचान कर,करती यौवन - भोग।।
वनिता,महिला,कामिनी,नारी के बहु नाम।
वामा भी वह मानवी,पुरुष देखता चाम।।
देवी , दुर्गा, शारदा, रमा, चंचला नाम।
नारी के बहुरूप हैं, कर्मों के परिणाम।।
आधे जन भूगोल में, नारी का संसार।
आधे नर साभार हैं, देखा शोध - विचार।।
🪴शुभमस्तु !
05.04.2023◆9.45आ.मा.
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