150/2023
[ग्रीष्म,गौरैया,लू,तपन,पखेरू]
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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☘️ सब में एक ☘️
जेठ मास आषाढ़ में, ग्रीष्म तपे पुरजोर।
छाँव खोजती छाँव को,दिखें न कोकिल मोर
मौन खड़े तरु शिंशपा,हिलता एक न पात।
ग्रीष्म सताए रात-दिन,दूर खड़ी बरसात।।
गौरैया ये नीड़ में,अंडे रखकर चार।
दाना तिनका ला रही,हर्षित है परिवार।।
शुभता का पर्याय है, गौरैया का गीत।
वर्षा हो आनंद की, गर्मी हो या शीत।।
पड़े थपेड़े जेठ के,कामिनि सुमन -कपोल।
लू से मुरझाने लगे,बिगड़ गया भूगोल।।
गिरे टिकोरे आम के,चलती लू दिन- रात।
गए बीनने बाग में,बालक हुआ प्रभात।।
क्यों दिनकर हैं क्रोध में,तपन बढ़ाते नित्य।
स्वेद-सिक्त नर -नारियाँ,ज्ञात नहीं औचित्य।।
अवा -तवा धरती बनी,तपन बढ़ी दिन-रात।
देती है संकेत ये, होगी अति बरसात।।
बूँद - बूँद जल के लिए,भटक रहे हैं श्वान।
दुखी पखेरू हैं सभी, फैला तपन-वितान।।
नीर पिलाएँ प्रेम से,व्यथित पखेरू ढोर।
चोंच खोल निज ताकती, गौरैया प्रति भोर।।
☘️ एक में सब ☘️
तपन बढ़ी लू की बड़ी,
जेठ ग्रीष्म का मास।
अन्य पखेरू संग ले,
गौरैया दे आस।।
🪴शुभमस्तु !
04.04.2023◆11.30 प.मा.
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