163/2023
■●■●■●■●■●■●■●■●■●
✍️ शब्दकार ©
🧕🏻 डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■●■●■●■●■●■●■●■●■●
धरिणीवत
धारिणी
नित तारिणी,
सदा वत्सला
संतति हित
सुजला सुफला
विमला कमला,
शारदा दुर्गतिनाशिनी
जननी।
देती सदा स्नेह
निस्संदेह,
कुक्षि में रखती
नव मास,
कष्ट में यद्यपि
रहती तेरी श्वास,
अटल विश्वास
नहीं कोई
जननीवत समता।
सुत हो
अथवा सुता,
सभी से सम नाता,
हे प्रसविनी माता
सुत निशिदिन
तुझको ध्याता,
मनवांछित
सब पाता,
आजीवन तेरे
गुण गाता।
जिसने माँ को पूजा
जीवन उसका धन्य हुआ,
नहीं जग में
जननी सम दूजा,
जननि शीतल
जल का कूजा,
तेरा ही सु -नाम
धरती के
कण -कण में गूँजा।
जननि के
मौन आशीष,
सदा रहते
निज संतति के संग,
विपत्ति में बनते
रक्षक त्राण,
बचाते प्राण,
धन्य माँ जननी
वरदायनी
'शुभम्'के तन में
कण - कण में बसती,
समर्पित माँ को
मेरी हस्ती,
नमन माँ तुझको
बारम्बार।
🪴शुभमस्तु !
11.04.2023◆5.30 आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें