146/2023
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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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तुम बिना न
कोई है
तुम ही हो आधार।
कण- कण में
व्यापित हो
नहीं एक आकार।।
जल -थल में
नील गगन
तारे सूरज सोम।
गिरि ऊँचे
सागर में
नन्हे - नन्हे रोम।।
क्यारी के
खिलते वे
उत्तमांश अवतार।
पाहन में
मानव में
मौन चेतना - राज।
मंदिर में
उर- दर में
सजता है प्रभु-साज।।
नारी में
हर नर में
उपकृत है उपहार।
दानव में
देवों में
तम तुम ही सुप्रकाश।
माहुर में
अमृत में
सुजीवन भी विनाश।।
हाथी में
चींटी में
ईश्वर की चमकार।
जाग्रति में
स्वप्नों में
अवचेतन भी रूप।
निर्धन में
बहु धन में
हैं प्रभु जी ही भूप।।
छप्पर में
खप्पर में
आवेशित प्राकार।
अर्थ नहीं
जीवन का
महत तत्त्व सप्राण।
रक्षक तुम
पालक भी
हैं क्यों हम म्रियमाण??
तुम बिना न
मेरा जग
होता है व्यतिकार।
🏕️ शुभमस्तु !
03.04.2023◆10.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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