168/2023
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✍️शब्दकार ©
🤱🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पोंछ रहा
जननी के
आँसू बेटा भोला।
उठता उर
तपता - सा
भारी -भारी गोला।।
क्या दुख है
मेरी माँ
तुझको कौन सताए।
तेरा सुत
उरज-अंश
सह क्या तृण भर पाए??
देख -देख
ये कपोल
उर मेरे विष घोला।
कारण मैं
तो नहीं न
बता दे मात मेरी।
तन -मन की
वह पीड़ा
भर रही अँधेरी।।
छोटा हूँ
तो क्या है
दहकता हृदय- शोला।
मेरा तन
ही नंगा
विवसन मैं यहाँ खड़ा।
कत पोंछू
मैं तव अश्रु
हाए ! मैं अवश बड़ा।।
तेरा ही
आँचल है
मेरे हित अनमोला।
घुटनों पर
लगा टेक
बैठी दुःखी जननी।
पिता नहीं
संभवत:
घर पर कोई सजनी।।
यहाँ - वहाँ
यों कोई
क्यों माँ से कटु बोला।
रग - रग में
बहता जो
रक्त जननि का मुझमें।
और कहाँ
उफनेगा
पीड़ा , माँ के दुख में!!
समझ नहीं
भीतर उर
सुत का कब है पोला?
धन्य हृदय
जो धड़के
माँ को दुख में तारे।
अला - बला
हर ले सब
'शुभम्' अपनपा हारे??
आवंटित
जननि -कुक्षि
पीड़ाहर शुचि चोला।
🪴 शुभमस्तु !
17.04.2023◆12.45प०मा०
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