सोमवार, 17 अप्रैल 2023

संवेद्य संतति और जननी 🤱🏻 [ गीत ]

 168/2023


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✍️शब्दकार ©

🤱🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पोंछ रहा

जननी के

आँसू बेटा भोला।

उठता उर

तपता - सा

भारी -भारी  गोला।।


क्या दुख है

मेरी माँ 

तुझको  कौन  सताए।

तेरा सुत

उरज-अंश

सह क्या तृण भर पाए??


देख -देख 

ये कपोल

उर मेरे विष घोला।


कारण मैं 

तो नहीं न

बता दे मात मेरी।

तन -मन की

वह पीड़ा

भर रही अँधेरी।।


छोटा हूँ

तो क्या है

दहकता हृदय- शोला।


मेरा तन

ही नंगा

विवसन मैं यहाँ खड़ा।

कत पोंछू

 मैं तव अश्रु

हाए ! मैं अवश बड़ा।।


तेरा ही

आँचल है

मेरे हित अनमोला।


घुटनों पर

लगा टेक

बैठी दुःखी जननी।

पिता नहीं

संभवत:

घर पर कोई सजनी।।


यहाँ - वहाँ

यों कोई

क्यों माँ से कटु बोला।


रग - रग में

बहता जो

रक्त जननि का मुझमें।

और कहाँ

उफनेगा

पीड़ा , माँ के दुख में!!


समझ नहीं

भीतर उर

सुत का कब है पोला?


धन्य हृदय

जो धड़के

माँ को  दुख  में  तारे।

अला - बला

हर ले सब

'शुभम्' अपनपा हारे??


आवंटित

जननि -कुक्षि

पीड़ाहर शुचि चोला।


🪴 शुभमस्तु !


17.04.2023◆12.45प०मा०

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