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✍️ शब्दकार ©
🏡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जाता नहीं
मुख विवर में
नन्हा -सा निवाला,
कोई तो
बतलायेगा
सच का हवाला।
किंकर्तव्यविमूढ़ -सा
बैठा हुआ है,
रदपुट युगल
क्यों सिले हैं?
कुछ ऐसा हुआ है,
जो न होना था,
अपना वश न
चींटी - सा चला है!
द्रौपदी की लाज हो!
अथवा धर्म- संकट
खड़ा हो,
आदमी ये सोचता
अनमन पड़ा हो!
शत्रु का पाशा
कहीं दृढ़तर अड़ा हो,
बिना ताले
होठ तो सिल जाएँगे ही,
भीष्म द्रोणाचार्य
पांडव सभी
जमीं में गड़ जाएँगे ही,
क्लीववत
मृत प्रायः सारे,
वज्रमारे।
ऐ कवि साहित्यकारो!
क्यों पड़े ताले
तुम्हारे रद युगल पर,
देश क्या दिखता नहीं
किस पतन- पथ पर
है अग्रसर,
उन्हें बस मतों की
फिक्र भारी,
कर हथिया सकें
गद्दी 'पियारी'!
ये मतमंगे
वही मछली मारने को
धनुष बाणों के संधान की
तैयारी?
देश जाए भाड़ में
उन्हें क्या!
होठों पर ताला लगाए
देखते हैं
देश जलता!
देश जलता!!
नोट कमरों में भरे
बस वह चुप -चुप
निकलता,
एक थैली के सभी
जो चट्टे -बट्टे!
.....के पट्ठे!
🪴शुभमस्तु !
04.03.2023 ◆4.05प.मा.
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