रविवार, 30 अप्रैल 2023

कल की सोचे आज 🏕️ [ गीतिका ]

 180/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कल की सोचे आज,सुधी मानव वह  होता।

दूरदर्शिता-भाव,   न  नैया  बीच   डुबोता।।


नहीं   सोचते   ढोर,  नहीं  खग  भी  बेचारे,

ज्यों  ही  होता  भोर, लगाते नभ  में  गोता।


जीवन भर का  लेख,विधाता लिखते  पहले,

मानव  तू  भी देख ,नहीं  रह यों ही सोता।।


भावी   का  संज्ञान,  करे जो मानव  चिंतन,

बना  वही  पहचान, कल्पतरु -दाना  बोता।


जीता  ढोर   समान , बना जीवन  परजीवी,

कैसे  बने  महान, अश्रुभर  दृग   से   रोता।


जमा  दूध   को  नित्य,दही बन जाता गाढ़ा,

पाता  वह   नवनीत,हाथ से खूब   बिलोता।


देता  मिट्टी  लाद, पीठ पर मालिक   उसका,

हेंचू -  हेंचू   नाद ,मार   खा करता   खोता।


सेवा करे न पुत्र,जननि अपने  पितु ,गुरु की,

रहता सदा अभाग,नयन- जल से तन धोता।


'शुभम्'  वही  नर धन्य,दूरदर्शी  हो  जीवन,

नहीं मनुज वह वन्य,सुमन की माला पोता।


🪴शुभमस्तु !


21.04.2023◆9.30 प.मा.

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