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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कण-कण को
शुभ साथ चाहिए
जीवन का सहकार।
शाख-शाख
पल्लव हिलते हैं
करते नित उपकार।।
सृष्टि रची
विधि ने ये अद्भुत
सबका निर्मित जोड़ा।
जो चाहा
वह योग मिलाया
पंथ उसी ने मोड़ा।।
एक - एक
मिल ग्यारह बनते
देते निज उपहार।
पति -पत्नी
कहलाते दंपति
मानव चींटी हाथी।
मिला कदम
वे सँग - सँग चलते
होते जीवन -साथी।।
जड़ -चेतन
आकर्षण में भर
मिलते विविध प्रकार।
सात -सात
जन्मों का बंधन
योनि-योनि दर जाता।
सनातनी
हर मानव हिन्दू
सत्य यही पतियाता।।
धर्म -पंथ
हो जाता पावन
हो कृतज्ञ कृतिकार।
सुहृद भाव
चलती है संसृति
हिंसा - भाव न लाना।
शूल -फूल
पर हँसकर चलना,
अधर युगल मुस्काना।।
चलता है
निर्बाध सुजीवन
भवनिधि होता पार।।
🪴शुभमस्तु !
01.04.2023◆5.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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