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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नीचे जो आया धरा, कहलाया अवतार।
नरक स्वर्ग सब कर्म के,जीव धरे आकार।।
पाप निरंतर बढ़ रहा,पापी जन का भार।
पुनः धरा पर आइए,लेकर प्रभु अवतार।।
लेते हैं अवतार सब,पूर्व योनि को त्याग।
कर्मों का परिणाम है,पाप-पुण्यकृत भाग।।
त्रेता में श्रीराम ने,लिया मनुज अवतार।
लीला पुरुषोत्तम बने, हरने को अघभार।।
कीट योनि खग ढोर भी,मनुज विटप का रूप
विविधाकृति अवतार की,कब दरिद्र कब भूप
द्वापर में श्रीकृष्ण थे,कलयुग कल्कि स्वरूप।
लेंगे फिर अवतार वे,धनुष - बाण का यूप।।
कर्मों के अवतार ही, हैं चौरासी लाख।
योनि प्रबल परिणाम है,यथा जीव की शाख
बदल रूप अवतार का,लेते हैं प्रतिशोध।
जीव-जगत ब्रह्मांड में,कर ले हे नर बोध।।
गधा बना इस योनि में,पिछले जन्म कुम्हार।
गिन-गिन बदला ले रहा, मालिक से अवतार
खाल ओढ़ कर शेर की,सिंह बना है श्वान।
भेद खुले अवतार का,रहे न तेरा मान।।
चींटी भी अवतार है,हाथी भी अवतार।
काया से ही कर्म का,निर्मित यह संसार।।
🪴शुभमस्तु !
19.04.2023◆7.15आ०मा०
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