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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जाना मत उस द्वार,जहाँ सम्मान नहीं।
स्वार्थ भरा संसार, किसे संज्ञान नहीं!!
कर्मवीर को देश, करेगा याद सदा,
कर्महीन का नाम, कहीं पहचान नहीं।
बदल - बदल कर वेश, देश जो ठगते हैं,
पग - पग पर बदनाम,कहीं गुणगान नहीं।
करते झूठी बात, द्वार पर मतमंगे ,
बदल मुखौटे नित्य,मनुज अनजान नहीं।
सुन कोकिल की कूक,जगी विरहिन पीड़ा,
रस लेता अलि चूस,सुमन को भान नहीं।
कर महलों में वास,आम को भूला है,
क्या न तुझे अनुमान,कृषक पर छान नहीं।
जनसेवा का नाम, ख़ाक से लाख हुआ,
'शुभम्' तुम्हारा काम, कहीं संधान नहीं।
🪴शुभमस्तु !
10.04.2023◆6.00आ०मा०
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