शनिवार, 22 जुलाई 2023

सत्कर्मों से चारुता ● [ दोहा ]

 312/2023

  

[अम्बुद,नटखट,प्रार्थना,चारुता,अभिसार]

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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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         ●  सब में एक ●

सावन  में  अंबुद घिरे,मिटी धरा  की  प्यास।

हर्षित हैं नर - नारियाँ,अतिशय बढ़ती आस।।

श्यामल  अंबुद की घटा, उमड़ी  चारों ओर।

अंकुर    प्यासे   झूमते,  वन  में  नाचें   मोर।।


गलियों में  हर्षित सभी, नटखट बालक  मीत।

नहा  रहे   हैं  नग्न  हो,गा पावस    के   गीत।।

किसका  बचपन लौटता, वापस  एक न रंग।

नटखट पन  भूला सभी, चालाकी  का संग।।


सुनते हैं प्रभु प्रार्थना,भावों से  अभिषिक्त।

मन  होना ही चाहिए, करें नहीं  नर  तिक्त।।

नहीं प्रार्थना कीजिए,जो छल, कपटी ,कूर।

अहंकार  में  लिप्त हो, रहना उससे    दूर।।


आती  है शुचि चारुता, सत्कर्मों  से  जान।

जीवन  वैसा  ही  बने ,हो यदि कर्म  महान।।

पति-पत्नी की चारुता,होती   सह सद्भाव।

कपट नहीं उर में रखे,किंचित मीत दुराव।।


चली चाँदनी रात में,करने प्रिय- अभिसार।

श्वेत शटिका देह धर, पहले कर  सुविचार।।

रोक नहीं कोई सके,प्रेयसि का अभिसार ।

नित उपाय  लाखों करे,नहीं मानती  हार।।


        ●  एक में सब  ●

नटखट  अंबुद  शून्य  में,

                            करने भू - अभिसार।

स्वीकारें     तप   - प्रार्थना,

                         कर चारुता    विहार।।


● शुभमस्तु !


19.07.2023◆6.45अरोहम मार्तण्डस्य

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