297/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● समांत : आस
●पदांत :अपदान्त
●मात्राभार :22.
●मात्रा पतन: शून्य।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
मिलते भाव पुनीत, मिलता जहाँ उजास।
होता तमस प्रतीत, रहती वहाँ न आस।।
करते जग को धन्य, उमड़े अंबर बीच।
बरस रहे पर्जन्य, उगी धरा पर घास।।
मिले न मरुथल छाँव,पादप नहीं अनेक।
सबका पृथक् स्वभाव,आता हमें न रास।।
चुभते ही हैं शूल,उलझ वसन को चीर।
उपवन में हैं फूल,प्रसरित मधुर सुवास।।
पड़ता अटल प्रभाव, सत्संगति का मित्र।
काँटा देता घाव, क्यों रहता है पास।।
प्रभुता मद का हेत,मन में करें विचार।
आँधी की ज्यों रेत,रुकता नहीं विकास।।
'शुभम्'सँभल चल चाल,काजर की कोठरी।
करे न लेश मलाल, करना यही प्रयास।।
●शुभमस्तु!
10.07.2023◆3.00आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें