317/2023
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● © शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्
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बदली-बदली-सी लगती माँ।
रंग-बिरंगी जब सजती माँ।।
काली से गोरी हो जाती,
रगड़ चाम जब तुम धुलती माँ।
सुबह और ही रूप तुम्हारा,
अलग रात को तुम फबती माँ।
मुख पर क्रीम सफ़ेदी पोतो,
लाल अधर में हो खिलती माँ।
मामा जैसी कला बदलती,
पूनम जैसी तुम खुलती माँ।
दादी की नजरों में डाहिन,
गुपचुप पापा से छनती माँ।
बाबा - दादी तुम्हें न भाते,
नाना - नानी से मिलती माँ।
सबको संतति अपनी प्यारी,
औरों से हो क्यों जलती माँ?
'शुभम्' समझना गूढ़ पहेली,
बड़ा कठिन है हर चलती माँ।
● शुभमस्तु !
23.07.2023◆4.00प०मा०
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