320/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दुनिया में शृंगार न होता।
रंग-भेद फिर भार न होता।।
दुलहन नहीं ढूँढते गोरी।
भले न हो तन-मन की कोरी।
आजीवन पति रोता - धोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
रूज़,क्रीम,बिंदिया या लाली।
नाक न होती नथनी वाली।
न ही कान का झुमका खोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
मुखनिखार-गृह कद्र न होती।
काली गाल न कभी भिगोती।
दुग्ध - क्रीम में लगता गोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
हुई आज तक भैंस न गोरी।
कैसे हों फिर पय-सी छोरी।
भैंसा बीज गाय के बोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
चूड़ी, पायल, कँगना, नथनी।
मंगल-माला पड़े पहरनी।
क्रय कर सोना साजन रोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
नहीं रूठती पति से नारी।
होती नहीं पुरुष से भारी।
कंचन नींद चैन की सोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
'शुभम्' मखमली नर का फंदा।
नारी का तन -मन कर गंदा।
नाटक स्वयं पुरुष संजोता।
दुनिया में शृंगार न होता।।
● शुभमस्तु!
24.07.2023◆ 10.30 आ०मा०
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