मंगलवार, 25 जुलाई 2023

दुनिया में शृंगार न होता! ● [ गीत ]

 320/2023


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●© शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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दुनिया   में   शृंगार  न होता।

रंग-भेद फिर  भार न होता।।


दुलहन   नहीं    ढूँढते   गोरी।

भले न हो तन-मन की कोरी।

आजीवन पति  रोता - धोता।

दुनिया  में  शृंगार  न  होता।।


रूज़,क्रीम,बिंदिया या लाली।

नाक न होती  नथनी   वाली।

न ही कान का झुमका खोता।

दुनिया में   शृंगार  न   होता।।


मुखनिखार-गृह कद्र न होती।

काली गाल न कभी भिगोती।

दुग्ध - क्रीम  में  लगता गोता।

दुनिया   में   शृंगार  न होता।।


हुई  आज तक भैंस न गोरी।

कैसे हों फिर  पय-सी छोरी।

भैंसा  बीज   गाय  के बोता।

दुनिया में   शृंगार  न होता।।


चूड़ी, पायल, कँगना, नथनी।

मंगल-माला    पड़े   पहरनी।

क्रय कर सोना साजन रोता।

दुनिया में   शृंगार   न  होता।।


नहीं  रूठती   पति   से नारी।

होती  नहीं  पुरुष   से   भारी।

कंचन नींद   चैन   की  सोता।

दुनिया में    शृंगार  न  होता।।


'शुभम्' मखमली नर का फंदा।

नारी का तन -मन कर गंदा।

नाटक स्वयं पुरुष संजोता।

दुनिया  में शृंगार  न होता।।


● शुभमस्तु!


24.07.2023◆ 10.30 आ०मा०

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